Rekha mishra

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लेखनी कहानी -20-Dec-2021

           नामुमकिन है 

तुम दस्तक दो मैं बाहर ना आऊँ, 
ऐसा नामुमकिन है।
तुम हाथ बढ़ाओ मैं अपना हाथ ना दूँ 
नामुमकिन है।
मुमकिन है हर चीज जो तुम प्यार से 
कहोगे। 
ग़र दिखाया रौब तो सोचो 
मुमकिन ये भी है मैं 
एक आंख तुम्हें ना देखूँ। 
मेरा वजूद भी बनाकर रखूंगी, 
पर तुम्हारे प्यार का भी मान है। 
लेकिन सुनो मैं बस प्यार की 
भाषा समझती हूँ। 
ये मेरा स्वभाव है। 
तुम दस्तक दो प्यार से और 
मैं दरवाजा ना खोलूँ 
नामुमकिन है। 
तुम्हारे प्यार भरे जज्बात ना समझूँ 
नामुमकिन है। 

By-Rekha 

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3 Comments

Rekha mishra

20-Dec-2021 08:28 PM

Thanks

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Swati chourasia

20-Dec-2021 08:16 PM

Very beautiful 👌

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Gunjan Kamal

20-Dec-2021 04:57 PM

बहुत खूब मैम

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